[फसल]लेखनी प्रतियोगिता -27-May-2022
यह कौन सी फसल बुवाई है।
जिसमे दुनिया हुई पराई है,
हर जन है जाल कोई बुन रहा,
रह रह कर सिर को धुन रहा,
नफ़रत की कर रहे सिंचाई है।
यह कौन सी फसल की बुवाई है।
द्वेष क्रोध को जोत कर,
धरा को दुख से गोद कर,
पैनेपन व्यंग्य सब खोभ कर,
कर रहे न फिर कोई दुहाई है,
यह कैसी फसल उगाई है।
यह कैसी फसल बुवाई है।
हैरानी बडी ही होती है,
जब अबला,जहर को बोती है,
खुद का बदला लेने को,
फिजा मे विष सा घोलती है।
यह कैसा नया चला है चलन
यहा निषंग बने है आत्म जन,
बस ज्यादा ज्यादा की होड लगी,
सब्र की बडी ही थोड पड़ी,
यहा जहरीली होती फिजाओ की,
पवन वेग सी बहती रोती है,
कैसी ये फसल बुवाई है ,
जो खुद ही खुद को न ढोती है।
हिंसा का बोकर बीज यहा,
छल कपट की खाद से सींच वहा,
कटाई भी मौत की होती है,
यह कैसी फसल बुवाई है ,
यहा जिंदगी मौत को रोती है,
यहा जिन्दगी मौत को रोती है।(2)
अरे भाई कुछ तो करो रहम,
इस बात को रखो तुम जरा जहन,
क्या ऐसी मिली थी धरा तुम्हे,
जो अब फूट फूट रोती है,
जो सह कर तुम्हारे विद्वेष सारे,
संकट खुद ही जर लेती है।(2)
बात मान लो तुम इस गरीब की जरा,
कहता है संदीप यह बात खडा ,
जीवन है प्रेम व नेह से भरा,
इसको न तबाह तुम करो भला,
यह नफरत, ये तेरा मेरा,
ये कहा है हवा मे या कही धरा,
यहा तो सब कुछ है सबके लिए ,
तुम ले लो सब तब भी है भरा,
बस बिखेरो तो प्रेम को बीज जरा
और सींचो तो तुम खुद को ही जरा,
देखो क्या फसल फिर आएगी,
यह धरा हरी भरी हो जाएगी,
सब होगा निर्मल,सुख व सुकून,
तब खिलेंगे जो नेह व त्याग के फूल,
भूल जाओ सब वो जो करी थी भूल
इससे धरती महकाएगी ,
तब फिर ये फसल जब आएगी,
सारे ही चमन को महकाएगी।
सारे जग को सुकून पहुंचाएगी
,,आनंद सुख का बरसाएगी।*(3)
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मौलिक रचनाकार।
संदीप शर्मा। देहरादून से।
,
,
Joseph Davis
28-May-2022 07:41 PM
Osm
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Shnaya
28-May-2022 12:39 PM
बेहतरीन
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Punam verma
28-May-2022 11:00 AM
Very nice
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